मै.......एक स्वेतपत्र हूँ ✍




कठोर हो रहे शब्द मेरे,
शायद!!!! खुद से ही त्रस्त हूँ

विरह की तपन नही, एक तृप्त रूह हूँ
मोह व भावनाओं से परे, एक विरक्त देह हूँ

छल,कपट, द्वेष का स्थान ही नही,
सांसारिक बन्धनों से रिक्त, एक स्वेत पत्र हूँ

कर्तव्य से विमुख नही,
सम्बन्धों की विवशता से मुक्त हूँ

सुख व दुख कोई मायने ही नही,
' मै ' को त्यागकर, वैराग्य की दिशा में प्रसस्त हूँ

पथ की शूल सी चुभन स्वीकार करते हुए
खुद में ही खोई कहीं, एक गुमराह शक्ति हूँ

कठोर हो रहे शब्द मेरे,
शायद!!!! खुद से ही त्रस्त हूँ........✍✍✍✍

#सुनिधि

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