नजर आया.......






शहर की धूल में हर कोई धूमिल ही नजर आया,
देखा खुद को तो......
आईने में धुँधला सा एक अक्स नजर आया।।

अपने वजूद को खोकर दुनिया को हँसाने में,
खुद की पहचान को ही कहीं मिटता हुआ पाया । ।

जो उठाते रहे ताउम्र उँगलियाँ बेकसूर पर,
वही शख्स रोशनी में गुनहगार नजर आया।।

कभी सोचते है हम भी तन्हाइयों में अक्सर,
क्या हमने खो दिया, और क्या हमने पाया।l

पर्दा जो हटाना चाहा मतलबी रिश्तों के चेहरे से ,
फ़रेबी दुनियाँ का मंजर बे-नूर नजर आया।।

#सुनिधि ✍

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