इन वीरानियों की आदत,
पहले तो न थी
चाहत से इस कदर नफरत,
हमको भी न थी ।।
धोखा, फ़रेब, बस आँसूँ
इतनी सी ही सच्चाई है,
जमाने मे इश्क़ की कीमत,
सिर्फ बेबफाई है।।
हमें भी मायूसियों की,
तलब यूँ न थी,
किसी अपने से नफरत,
इस कदर न थी।।
छूट गए वो अपने, जो पराए थे
चेहरों के नकाब को समझने की आदत न थी।।
हर पल छला, हर कदम पर सबने,
फिर भी फ़ितरत में मेरी बेबफाई न थी।।
जिनको जितनी इज्जत दी,
उसने उतनी ही रुशवाई दी,
मेरी सिसकियों की आवाज,
बस तन्हाइयों में सुनाई दी।।
नाज़ था कि मेरे साथ मेरी परछाइयाँ थी,
पीछे मुड़ के मगर देखा, सिर्फ गुमनामियाँ थी
वक़्त, बेवक्त छोड़ते गए साथ सब,
बस आँसुओं में लिपटी इतनी सी मेरी कहानी थी.......
#सुनिधि
बहुत खूब , कभी मेरे ब्लॉग पर भी आईये।
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