गरीबों के घर के चिराग़ों को बुझाकर श्मशान बना दिया है
फिर से सिस्टम की लाचारी ने जिंदगी का तमाशा बना दिया है।।
फिर से सिस्टम की लाचारी ने जिंदगी का तमाशा बना दिया है।।
लूट कर जनता को खाने को ही घूमते रहते है,
हर घड़ी सत्ता का बस सुख भोगने को फिरते है।।
हर घड़ी सत्ता का बस सुख भोगने को फिरते है।।
दुख गरीबों का नजर में आता सिर्फ वोट के लिए है
घर मे जाकर कभी दलित, कभी गरीब बन जाते है।।
घर मे जाकर कभी दलित, कभी गरीब बन जाते है।।
सिर्फ बहा कर आँसू जनता को दिखाते है,
दोषियों के खिलाफ क्यों नही कड़े कदम उठाते है।।
दोषियों के खिलाफ क्यों नही कड़े कदम उठाते है।।
बयान बाजी से ही बस सिस्टम में सुधार करते है,
क्यों सभी फिर भी ऐसे नेताओं से आस करते है।।
क्यों सभी फिर भी ऐसे नेताओं से आस करते है।।
चेहरे मोहरे सिर्फ शियासत में बदलते रहते है,
कहाँ कोई है ऐसा जो जनता की फिक्र करता है।
कहाँ कोई है ऐसा जो जनता की फिक्र करता है।
#सुनिधि
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