कारगिल विजय दिवस

एक शहीद की विधवा की दुहाई है,
उसने रो रो के आज अपनी व्यथा सुनाई है……..
जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे थे,
देखने वाले भी मासूम के दर्द से हारे थे।।
मेहन्दी का रंग हाथ से उसके उतर भी न पाया था,
जब किसी ने उनके जाने का पैगाम सुनाया था।।
अपनी ख़ुशनुमा जिंदगी के सब सपने जल गए थे,
मगर फिर भी सुहागन ने जब विधवा के हर रश्म निभाए थे।।
चंद रोज को ही कलाई में उसकी चूड़ी खनक पाई,
दर्द सीने में कैद करके बो ठीक से रो भी नही पाई।।
उस माँ के दिल का दर्द कोई क्या समझा था,
जिसके जिगर का टुकड़ा तिरंगे में लिपटा था।।
गर्व तो है सभी को उनके शहीद होने का,
उनका मातृभूमि के लिए बलिदान देने का।।
मगर कबतक शहीद यूँही कुर्बानियां देंगे,
अपने बच्चों को छोड़ कर वीरानियाँ देंगे।।
कुछ हो ऐसा जो कोई दुश्मन आंख न उठा पायें,
अपने वीर सिपाही भी वतन की सेवा और कर पायें।।
फिर कोई सुहागन का न सुहाग इस कदर उजड़े,
किसी माँ का लाल इस कदर न तिरंगे में फिर लिपटे,
देश की सेवा करना ही धर्म अपना है,
शत्रु को जड़ से मिटाना संकल्प अपना है।।
#सुनिधि

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