खामोश....

कितनी उथल पुथल मची है संसार में,
मैं हूँ खामोश तमाम यार में।।

दिल सह जाता है दर्द मुस्कुराकर,
लाख छलनी है मोहब्बत के प्रहार में।।

जब भी करते है गुफ़्तगू दिल पर वार करते है,
कुछ तो बात है अब भी मेरे यार में।।

समझाने को चाहता है दिल मगर दिमाग रोक लेता है,
क्यों खामखाँ रक्खा है जकड़ इस जंजाल में।।

हर तरह धोखा औऱ स्वार्थ है भरा,
भावनाओं का मोल ही नही है मतलबी संसार में।।

निशां मिटने नही देता रूह से अब भी उनके,
शायद कुछ तो बाकी है असर अब भी मेरे प्यार में।।

जब भी खोली है किताब बीती जिंदगी की,
हर एक लफ्ज़ घायल पाया किसी गैर की फरियाद में।।

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